युंही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना By फ़िल्मी शेर, Ghazal << अपने गुमान-ए-तर्क-ए-मोहब्... वक़्त से दिन और रात वक़्त... >> युंही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना तिरी याद तो बन गई इक बहाना हमें भी नहीं इल्म हम जिस पे रोए वो बीती रुतें हैं कि आता ज़माना ग़म-ए-दिल है और ग़म-ए-ज़िंदगी भी न इस का ठिकाना न उस का ठिकाना कोई किस पे तड़पे कोई किस पे रोए इधर दिल जला है उधर आशियाना Share on: