अपने ही एक ख़्वाब से हारे हुए हैं हम कैसी हसीन रात के मारे हुए हैं हम वो अश्क-बार आँख है लब चूमती हुई पी कर उदास लम्स ही खारे हुए हैं हम इक जंग लड़ रहे हैं बिला तेग़ बे-सिपर दुश्मन भी सोच में है कि हारे हुए हैं हम रोना पड़ेगा हार के आख़िर ख़ुदा को भी कब से दुआ को हाथ पसारे हुए हैं हम इक रौशनी सी कौंद गई आसमान में बुझती हुई दो आँखों के तारे हुए हैं हम मिलना है तेरी रूह से हम को बदन बग़ैर अपना लिबास-ए-जिस्म उतारे हुए हैं हम