जैसे हो मरहम लगाया तीर ने उस तरह काटा गला शमशीर ने सर पटक कर देखना है एक बार इश्क़ को पत्थर कहा था 'मीर' ने उस मुसव्विर के हुनर को देख कर रंग ख़ुद में भर लिए तस्वीर ने है वो मंज़र चश्म-ए-तर की क़ैद में हँस के छोड़ा था कि जब ज़ंजीर ने ख़्वाब प्यासे थे हमारे मर गए ख़ून माँगा था बहुत ता'बीर ने