अपने ज़ख़्मों को धो रहा है कोई ख़ून ही ख़ून हो रहा है कोई क़िस्सा-ए-ग़म संजो रहा है कोई मोतियों को पिरो रहा है कोई मेरी आँखों में फिर से आँसू हैं आज फिर दिल में रो रहा है कोई बात हाँ ना की थी किसी के लिए उम्र का बोझ ढो रहा है कोई गुलशन-ए-इश्क़ का पता दे कर ख़ुशबुओं में डुबो रहा है कोई ख़्वाब छूने लगे हैं आँखों को हसरतों को भिगो रहा है कोई चाँद के साथ इक सितारा 'ज़फ़र' जैसे बाँहों में सो रहा है कोई