अपने कश्कोल में वो शम्स-ओ-क़मर रखते हैं

अपने कश्कोल में वो शम्स-ओ-क़मर रखते हैं
जो क़लंदर हैं ज़माने की ख़बर रखते हैं

मंज़िलें उन ही के हमराह चला करती हैं
अपने सीने में जो अल्लाह का डर रखते हैं

नुसरतें उन के क़दम चूमती रहती हैं सदा
है जो दीवाने कहाँ रख़्त-ए-सफ़र रखते हैं

अज़्म के बूते पे उड़ते हैं बुलंदी की तरफ़
पर नहीं क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ मगर रखते हैं

हम ने अज्दाद से विर्से में ये पाया है हुनर
हम समुंदर के तमाशों पे नज़र रखते हैं

बाँध लेते हैं बमों को भी शिकम से अपने
दिल है फ़ौलाद के लोहे का जिगर रखते हैं

इन शरीफ़ों को तू बुज़दिल न समझना 'साबिर'
टैंक और तोप चलाने का हुनर रखते हैं


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