अपने पिंदार को खोया नहीं जाता मुझ से मैं जो चाहूँ भी तो रोया नहीं जाता मुझ से मुब्तला हो मिरा हम-साया किसी ग़म में अगर जागता रहता हूँ सोया नहीं जाता मुझ से हादसों में भी रही है मिरे होंटों पे हँसी ग़म को ख़ुशियों में समोया नहीं जाता मुझ से क़िस्सा-ए-ज़ुल्म में कैसे लिखूँ कब तक लिक्खूँ अब क़लम ख़ूँ में डुबोया नहीं जाता मुझ से एक जुगनू भी तो सजता नहीं पलकों पे 'शरर' एक मोती भी पिरोया नहीं जाता मुझ से