ऐश से बे-नियाज़ हैं हम लोग बे-ख़ुद-ए-सोज़-ओ-साज़ हैं हम लोग जिस तरह चाहे छेड़ दे हम को तेरे हाथों में साज़ हैं हम लोग बे-सबब इल्तिफ़ात क्या मअ'नी कुछ तो ऐ चश्म-ए-नाज़ हैं हम लोग महफ़िल-ए-सोज़ ओ साज़ है दुनिया हासिल-ए-सोज़ ओ साज़ हैं हम लोग कोई इस राज़ से नहीं वाक़िफ़ क्यूँ सरापा नियाज़ हैं हम लोग हम को रुस्वा न कर ज़माने में बस-कि तेरा ही राज़ हैं हम लोग सब इसी इश्क़ के करिश्मे हैं वर्ना क्या ऐ 'मजाज़' हैं हम लोग