अपने रंग में रंग दूँगा मैं ऐन तुम्हें हद से बढ़ के कर दूँगा बेचैन तुम्हें अहल-ए-क़र्या मुझ से हैं बेज़ार बहुत देता नहीं क्या मेरा सुनाई बैन तुम्हें दिल में रूह में हर इक जा में रक्खा है माथे पर और आँखों के माबैन तुम्हें जान से बढ़ कर लोगो उन से प्यार करो शेर-ए-ख़ुदा ने जब हैं दिये सिबतैन तुम्हें आ कर 'शोख़' के सीने से तुम लग जाओ तरस रहा हूँ देखने को मैं ज़ैन तुम्हें