हम यूँही रोज़ किसी बात पे अड़ सकते हैं

हम यूँही रोज़ किसी बात पे अड़ सकते हैं
इस बहाने भी तो इक दूजे से लड़ सकते हैं

जब भी मिलते हैं तो इक दिल में कसक होती है
वस्ल से गुज़रेंगे तो हिज्र में पड़ सकते हैं

देखना यूँ मैं तिरे दिल में उतर सकता हूँ
मुझ को फंदे में तिरे नैन जकड़ सकते हैं

बातें सुन सकते हैं जब दो टके लोगों की हम
तिरी ख़ातिर ज़मीं पर नाक रगड़ सकते हैं

दर-ब-दर मेरे भटकने का यूँ अंदाज़ा करो
धूप में रक्खे हुए फूल सुकड़ सकते हैं

बचपने में कोई बच्चा है बिगड़ता जितना
हम तिरे प्यार में उतना तो बिगड़ सकते हैं

एक होना ही नहीं 'शोख़' तो फिर मसअला क्या
हम ने जब प्यार किया है तो बिछड़ सकते हैं


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