अपने साए को भी असीर बना बहते पानी पे इक लकीर बना सिर्फ़ ख़ैरात हर्फ़-ओ-सौत की दे शहर-ए-फ़न का मुझे अमीर बना शोख़ तितली है गर हदफ़ पे तिरे गुल के रेशों से एक तीर बना मुझ को कश्कोल के बग़ैर ही दे इक गदागर नहीं फ़क़ीर बना रेत पर राह ढूँड मत 'साबिर' आ फ़लक पर नई लकीर बना