अपने शब-यारों से किस तरह मैं ग़ाफ़िल हो जाऊँ आसमाँ जाग रहा है तो मैं कैसे सो जाऊँ दिल-ब-दर मैं भी हूँ और तू भी है मा'ज़ूल-नज़र तू इजाज़त दे अगर मुझ को मैं तेरा हो जाऊँ वक़्त ने इतने बदलवाए हैं चेहरे मुझ से ख़ौफ़ है भीड़ में इन की न किसी दिन खो जाऊँ जहल की बाँझ ज़मीनों में न अग पाऊँगा इल्म-परवर हो ज़मीं कोई तो ख़ुद को बो जाऊँ अब्र-ए-ग़म दिल का बरस जाए तो इस पानी से दाग़ धब्बे हैं जो आँखों में उन्हें भी धो जाऊँ