अपनी आँखों से न देखो यूँ न देखो देखो है अभी आग बुझी फिर न लगाओ देखो बुझ गए अपनी मोहब्बत के दिये अब तो बस नफ़रतें आँख की आपस में दिखाओ देखो बाग़ में फूल खिले आए कभी बुलबुल तो अब के मुझ से न कहो दौड़ के आओ देखो उस के हो जिस के मैं बस ज़िक्र पे भी कहता था फिर कभी नाम भी उस का जो लिया तो देखो उन से 'मग़्लूब' कहें दिल की हक़ीक़त कैसे वो तो हर ऐब पे चिल्लाते हैं देखो देखो