अपनी आशुफ़्ता मिज़ाजी के समर बोल पड़े मैं जो ख़ामोश हुआ ज़ख़्म-ए-जिगर बोल पड़े रात यादों के परिंदों ने बहुत शोर किया जैसे ख़्वाबीदा जज़ीरों में सहर बोल पड़े दिल ने ख़ामोश मोहब्बत की तहारत सुन ली दम-ए-रुख़्सत जो तिरे दीदा-ए-तर बोल पड़े उन से दिन-रात बदलने का सबब जानना था शौक़-ए-तक़लीद में गुम शम्स-ओ-क़मर बोल पड़े पहले मिस्मार हुए ख़्वाब-घरौंदे 'अख़्तर' फिर हवाओं से गले मिल के शजर बोल पड़े