दे के दस्तक शबाब आता है बिन-बुलाए हिजाब आता है पहले आँखों में ख़्वाब आता है तब कहीं इंक़लाब आता है फिर तो रहती नहीं नदी बेवा जब पहाड़ों से आब आता है साक़िया तेरे बादा-ख़ाने में सिर्फ़ इज़्ज़त-मआब आता है कैसे मिल पाएगी हमें जन्नत वाइ'ज़ों को हिसाब आता है ऐसे आते हैं वो मिरी जानिब जैसे जाम-ए-शराब आता है वो भी आते हैं बाम पर ऐसे जिस तरह माहताब आता है उन के हिस्से में आईं ता'बीरें मेरे हिस्से में ख़्वाब आता है दिन में कर लो सभी दिए रौशन उन के रुख़ पर नक़ाब आता है तोहफ़ा देंगे तुम्हें जो फूलों का हम को भी इंतिख़ाब आता है तुम चलोगे जो सिम्त-ए-मय-ख़ाना पीछे 'पंछी'-जनाब आता है