अपनी बातों में जो सादा नज़र आता है मुझे ख़ुद में वो हद से ज़ियादा नज़र आता है मुझे और तो कुछ भी नहीं रख़्त-ए-सफ़र में शामिल एक बस अपना इरादा नज़र आता है मुझे ये मिरे सामने रक्खी है जो महलों की क़तार अपना दिल इन से कुशादा नज़र आता है मुझे फिर मिरे पाँव में आ जाता है चक्कर कोई फिर तिरे शहर का जादा नज़र आता है मुझे जब उलटती है किसी दौर में जीवन की बिसात शाह भी कोई पियादा नज़र आता है मुझे