अपनी ग़ैरत के अलावा कहीं देखे न गए ख़ुद से निकले थे मगर ग़ैर के पीछे न गए तुम को अफ़्सोस तुम्हें ठीक बनाया न गया और एक हम के अभी चाक पे रक्खे न गए इक सितम ये के हमें वस्ल में आया न सुकूँ इक सितम ये के तिरे हिज्र भी देखे न गए संग उस के तो मोहब्बत में सलीक़े से कटी बा'द उस के भी बदन से ये सलीक़े न गए तेरे आने पे कहाँ सर पे उठा लेते थे घर तेरे जाने पे तिरे पीछे दरीचे न गए उस की ख़ुश्बू को भी रुख़्सत न किया जाता था हम से कुछ रोज़ तो कपड़े भी उतारे न गए