मैं तो फ़िदा-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना हो गया पैमाना से दिल अब मिरा मय-ख़ाना हो गया हर रंग में मुझे है मए मुश्क-बू का रंग जो ज़र्फ़ हाथ आ गया पैमाना हो गया कुछ मख़मसात-ए-दहर थे दीवानगी से कम अच्छा हुआ कि इश्क़ में दीवाना हो गया दिल चाहिए गुदाज़ नहीं ज़ोर-ओ-ज़र से काम अपनी मिसाल इश्क़ में परवाना हो गया होता न बाग़-ए-दिल कभी शाहान-ए-इल्तिफ़ात अच्छा हुआ बहार में वीराना हो गया दानाई ज़ेर-ए-दाम है ऐ मुर्ग़-ए-दिल अबस माना कि दाना खा के तू अब दाना हो गया 'बेख़ुद' तो ना-रसाई ज़ुल्फ़-ए-बुताँ न पूछ क़िस्मत पे मेरी ख़ंदा-ज़न अब शाना हो गया