अपनी हस्ती ख़ुद हम-आग़ोश-ए-फ़ना हो जाएगी मौज-ए-दरिया आब-ए-साहिल आश्ना हो जाएगी तह का अंदेशा रहेगा फिर न साहिल की हवस दिल से जब क़त-ए-उमीद-ए-बेवफ़ा हो जाएगी शब की शब बज़्म-ए-तरब है पर्दादार-इन्क़िलाब सुब्ह तक आईना-ए-इबरत-नुमा हो जाएगी जान-ए-ईमाँ है अभी वो आँख शर्माई हुई कैफ़ियत में डूब कर क्या जाने क्या हो जाएगी