अपनी जंग ही लड़ती है लाख कहो वो बाग़ी है बाप के ज़िंदा रहने तक हर बेटी शहज़ादी है राहत जिस को कहते हैं माँ की गोद में होती है अब समझेंगे दुख मेरा अब उन की भी बेटी है तेज़ हवा की जाने बला पेड़ पे जो भी गुज़रती है तुम हो फ़लक कब समझोगे धरती क्या कुछ सहती है ग़म की मौजों में दिल की नाव बहती जाती है एक ही शख़्स को चाहो सदा ये कैसी मजबूरी है