अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ इस क़दर मुझे इक शख़्स था कि मिल न सका उम्र-भर मुझे शो'लों की गुफ़्तुगू में सबा के ख़िराम में आवाज़ दे रहा है कोई हम-सफ़र मुझे शायद उन्हीं का इज्ज़ मिरे काम आ गया जिन दोस्तों ने छोड़ दिया वक़्त पर मुझे शब को तो एक क़ाफ़िला-ए-गुल था साथ साथ यारब ये किस मक़ाम पे आई सहर मुझे हँसते रहे फ़लक पे सितारे ज़मीं पे फूल अच्छा हुआ कि उम्र मिली मुख़्तसर मुझे मुद्दत के बा'द उस ने सर-ए-अंजुमन 'ज़मीर' देखा निगाह-ए-आम से और ख़ास कर मुझे