अपनी सोचें शिकस्त-ओ-ख़ाम न कर चल पड़ा है तो फिर क़याम न कर मैं भी हस्सास दिल का मालिक हूँ सारे एहसास अपने नाम न कर जिस्म चाहे ग़ुलाम हो जाए ज़ेहनियत को मगर ग़ुलाम न कर मैं ख़ुद अपनी नज़र से गिर जाऊँ तू मिरा इतना एहतिराम न कर तेरे पीछे ग़ुबार उड़ने लगे ख़ुद को तू इतना तेज़-गाम न कर लोग मश्कूक हो चले 'आज़र' अब हर इक शख़्स को सलाम न कर