अपनी ठोकर से जो इक वार किया है मैं ने देख क्या रास्ता हमवार किया है मैं ने भुरभुरे जिस्म की मिट्टी ने बहुत ख़्वार किया अपने होने पे जब इसरार किया है मैं ने मैं यूँही आया नहीं बाग़-ए-अदन की जानिब एक सहरा था जिसे पार किया है मैं ने ऐ शब-ए-ख़्वाब ये हंगाम-ए-तहय्युर क्या है ख़ुद को गर नींद से बेदार किया है मैं ने वो कोई और न था मेरे अलावा 'गौहर' पाँव रख कर जिसे मिस्मार किया है मैं ने