अपनों को सनम ऐसे नाशाद नहीं करते यूँ चाहने वालों पर बेदाद नहीं करते मंज़ूर नहीं हरगिज़ मा'शूक़ की रुस्वाई मरते हैं भले 'आशिक़ फ़रियाद नहीं करते तू तोड़ सलाख़ें गर होना है रिहा ताइर सय्याद असीरों को आज़ाद नहीं करते शब वस्ल की जान-ए-जाँ हर रोज़ नहीं आती शिकवों में 'अबस शब ये बर्बाद नहीं करते दिन तो है गुज़र जाता रोज़ी के झमेलों में किस रात मगर तुम को हम याद नहीं करते बेदाद में लज़्ज़त हो है ख़ास रविश उन की किस दिन वो 'अज़ाब-ए-नौ ईजाद नहीं करते पाना है 'सदा' कुछ तो दरकार है जुरअत भी बे-दम की फ़रिश्ते भी इमदाद नहीं करते