अपने मरकज़ से कट गया हूँ मैं कितने हिस्सों में बट गया हूँ मैं वुसअत-ए-बे-कराँ का हिस्सा था इक बदन में सिमट गया हूँ में अब भी दुश्मन हैं लोग क्यों मेरे सब के रस्ते से हट गया हूँ मैं क्या था मक़्सद जहाँ में आने का यूँ ही आ कर पलट गया हूँ मैं देख कर बेवफ़ाई दुनिया की डर के ख़ुद से लिपट गया हूँ मैं मेरी हस्ती थी इक ग़ुबारे सी क्यों हो रोते जो फट गया हूँ मैं