करी निगाह-ओ-समाअ'त ने बरतरी तस्लीम लबों के साथ तिरी बात भी हुई तस्लीम हम ऐसे लोग पस-ए-जिस्म साँस लेते हैं हमारी मौत भी होती है ज़िंदगी तस्लीम चराग़ ढूँड के लाए कोई तो कह देना हमारी आँख अंधेरे को कर चुकी तस्लीम तुम एक बहर में जोड़ो दुआ के सारे हुरूफ़ कि आसमान पे होती है शाइ'री तस्लीम अता की क़द्र बढ़ाती है और महरूमी सो एक अंधा भी करता है रौशनी तस्लीम दयार-ए-शेर में पर्दा बहुत ज़रूरी है कहा सुना है सभी रद है अन-कही तस्लीम चराग़ हूँ सो मिरा काम सिर्फ़ जलना है कोई करे न करे मेरी रौशनी तस्लीम अभी भी कोई ख़ला है 'अक़ील' दुनिया में अभी भी लगता है दुनिया नहीं हुई तस्लीम