अक़्लीम-ए-अक़्ल-ओ-होश के सुलतान हो गए ख़ुद को भुला के साहिब-ए-इरफ़ान हो गए क्या जाने अक्स मेरा वहाँ कैसे आ गया वो आइने को देख के हैरान हो गए हर गोशा-ए-हयात मिरा जगमगा उठा रौशन मोहब्बतों के शम्अ-दान हो गए यादों के ज़ख़्म और ज़माने की तोहमतें हम बेकसों की मौत के सामान हो गए ऐसी हवा चली कि मिरा दिल ही बुझ गया तारीक मेरी ज़ीस्त के ऐवान हो गए 'तन्हा' से अब ज़रा भी मरासिम नहीं रहे तेरी तरफ़ से आज ये एलान हो गए