अरबाब-ए-गुलिस्ताँ का चलन देख रहा हूँ कलियों की जबीनों पे शिकन देख रहा हूँ नज़रों में सिमटती चली आती हैं बहारें इक शोख़ की रानाई-ए-तन देख रहा हूँ हर फूल तिरे हुस्न का आईना बना है जल्वे तिरे ऐ जान-ए-चमन देख रहा हूँ हालात की गर्दिश भी नज़र में है मगर आह! मजबूर निगाहों में थकन देख रहा हूँ फिर शौक़-ए-शहादत में बढ़े आते हैं जाँ-बाज़ इक हश्र सर-ए-दार-ओ-रसन देख रहा हूँ ये वादी-ए-गुल-पोश हसीनों के ये झुरमुट हर सम्त सितारों के चमन देख रहा हूँ ऐ 'नक़्श' नज़र में हैं नए दौर के अंदाज़ मिटते हुए आसार-ए-कुहन देख रहा हूँ