अरे मय-गुसारो सवेरे सवेरे By Ghazal << ठोकरों में असर नहीं आया आए हो तो ये हिजाब क्या है >> अरे मय-गुसारो सवेरे सवेरे ख़राबात के गिर्द फेरे पे फेरे बड़ी रौशनी बख़्शते हैं नज़र को तेरे गेसुओं के मुक़द्दस अँधेरे किसी दिन इधर से गुज़र कर तो देखो बड़ी रौनक़ें हैं फ़क़ीरों के डेरे ग़म-ए-ज़िंदगी को 'अदम' साथ ले कर कहाँ जा रहे हो सवेरे सवेरे Share on: