आए हो तो ये हिजाब क्या है मुँह खोल दो नक़ाब क्या है सीने में ठहरता ही नहीं दिल या-रब इसे इज़्तिराब क्या है कल तेग़ निकाल मुझ से बोला तू देख तो इस की आब क्या है मालूम नहीं कि अपना दीवाँ है मर्सिया या किताब क्या है जो मर गए मारे लुत्फ़ ही के फिर उन पे मियाँ इताब क्या है औरों से तो है ये बे-हिजाबी मुझ से ही तुझे हिजाब क्या है ऐ 'मुसहफ़ी' उठ ये धूप आई इतना भी दिवाने ख़्वाब क्या है