अरे ये अद्ल ये इंसाफ़ अल-अमाँ उन का कि हर ज़मीन मिरी और हर आसमाँ उन का दिलों में जिन के ग़म-ए-अहल-ए-कारवाँ न रहा पहुँच सकेगा न मंज़िल पे कारवाँ उन का हज़ार काबा-ए-ईमाँ वहीं-वहीं पे बने क़दम पड़ा था चमन में जहाँ-जहाँ उन का असीर-ए-जल्वा-ए-मंज़िल की क़ैद की ख़ातिर बिछेगा दाम-ए-असीरी कहाँ कहाँ उन का दिलों को जीत के शाहनशह-ए-जहाँ बन जा कि ये जहान है तेरा न ये जहाँ उन का कहाँ पे कीजिए सज्दा कि बन गई 'अमजद' जबीन-ए-शौक़ मिरी संग-ए-आस्ताँ उन का