दिल नहीं दिल का इज़्तिराब नहीं साग़र-ए-जम नहीं शराब नहीं दौर ये दौर-ए-इंक़िलाब नहीं बर्क़ में भी तो पेच-ओ-ताब नहीं बर्क़ तो है मगर सहाब नहीं धूप है और आफ़्ताब नहीं शौक़-ए-नाकाम ही सही लेकिन हुस्न भी आज कामयाब नहीं दिन में तारीकी-ए-शब-ए-ग़म है ये हक़ीक़त है कोई ख़्वाब नहीं ऐ नसीम-ए-सहर चमन में क्यों लाला-ओ-गुल में आब-ओ-ताब नहीं आदमी आदमी का दुश्मन है इक तमाशा है इंक़लाब नहीं इस को माहौल ने ख़राब किया आदमी फ़ितरतन ख़राब नहीं बाग़बाँ शाख़-ए-गुल से है नाराज़ बर्क़ अब मूरिद-ए-इताब नहीं सहन-ए-गुलशन में आज अब्र-ए-करम एक हम हैं कि फ़ैज़याब नहीं कुछ दिनों से न जाने क्यों दिल में इक ख़लिश सी है इज़्तिराब नहीं अब मिरे उन के दरमियाँ 'अमजद' कोई पर्दा नहीं हिजाब नहीं