आरज़ू आबाद है बिखरे खंडर के आस पास दर्द की दहलीज़ पर गर्द-ए-सफ़र के आस पास ख़ार की हर नोक को मजरूह कर देने के बा'द लौट जाना है मुझे बर्ग-ओ-समर के आस पास दीदनी हैं चाहतों की नर्म-ओ-नाज़ुक लग़्ज़िशें गर्दिश-ए-अय्याम में शाम-ओ-सहर के आस पास दूर इक ख़ामोश बस्ती की गली में देखना है तमन्ना मुतमइन मख़दूश घर के आस पास छा गई तूफ़ान के होंटों पे शैतानी हँसी देख कर कश्ती शिकस्ता सी भँवर के आस पास जब कोई रौशन निशाँ मिलता नहीं है धुँद में ढूँढता हूँ नक़्श-ए-पा राह-ए-गुज़र के आस पास फूल पत्तों की फ़ज़ा से सज गई दुनिया मरी है कहाँ अरमाँ मिरा लाल-ओ-गुहर के आस पास बे-नियाज़ी वक़्त से मुझ में न क़ाएम हो सकी मैं सदा हाज़िर रहा ताज़ा ख़बर के आस पास कूचा-ए-दिलदार का रंगीं ज़माना 'साहनी' आज भी आबाद है ज़ख़्म-ए-जिगर के आस पास