आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या क्या बताऊँ कि मिरे दिल में हैं अरमाँ क्या क्या ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी देखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या उन की ख़ुशबू है फ़ज़ाओं में परेशाँ हर सू नाज़ करती है हवा-ए-चमनिस्ताँ क्या क्या दश्त-ए-ग़ुर्बत में रुलाते हैं हमें याद आ कर ऐ वतन तेरे गुल ओ सुम्बुल ओ रैहाँ क्या क्या अब वो बातें न वो रातें न मुलाक़ातें हैं महफ़िलें ख़्वाब की सूरत हुईं वीराँ क्या क्या है बहार-ए-गुल-ओ-लाला मिरे अश्कों की नुमूद मेरी आँखों ने खिलाए हैं गुलिस्ताँ क्या क्या है करम उन के सितम का कि करम भी है सितम शिकवे सुन सुन के वो होते हैं पशीमाँ क्या क्या गेसू बिखरे हैं मिरे दोश पे कैसे कैसे मेरी आँखों में हैं आबाद शबिस्ताँ क्या क्या वक़्त-ए-इमदाद है ऐ हिम्मत-ए-गुस्ताख़ी-ए-शौक़ शौक़-अंगेज़ हैं उन के लब-ए-ख़ंदाँ क्या क्या सैर-ए-गुल भी है हमें बाइस-ए-वहशत 'अख़्तर' उन की उल्फ़त में हुए चाक गरेबाँ क्या क्या