ऐ दुनिया तेरे रस्ते से हट जाएँगे आख़िर हम भी अपने सामने डट जाएँगे हम ख़ुद को आबाद करेंगे अपने दिल में तेरे आँख-जज़ीरे से अब कट जाएँगे धुँध से पार भी काम करेंगी अपनी नज़रें आँख के सामने से ये बादल छट जाएँगे आख़िर ढल जाएगा ''जीवन-रोग'' का सूरज हम भी ''ओखे-दिन'' हैं लेकिन कट जाएँगे लोग हमें महसूस करेंगे फूल और तारे और हम सोचती ''दिल-आँखों'' में बट जाएँगे देखना ऐसी रात भी आएगी जब 'अख़्तर' धीरे धीरे हम तारों से अट जाएँगे