आरज़ूओं की रुतें बदले ज़माने हो गए ज़िंदगी के साथ सब रिश्ते पुराने हो गए आबला-पाई ने ऐसी शोख़ियाँ कीं रेत से वक़्त के तपते हुए सहरा सुहाने हो गए चंद लम्हे को तू ख़्वाबों में भी आ कर झाँक ले ज़िंदगी तुझ से मिले कितने ज़माने हो गए रात दरवाज़े पे बैठी थी सो बैठी ही रही घर हमारे रौशनी के कार-ख़ाने हो गए शोख़ियाँ 'दानिश' मतानत की तरफ़ हैं गामज़न ऐसा लगता है कि अब हम भी पुराने हो गए