ग़म-ए-हयात की पहनाइयों से ख़ौफ़-ज़दा मैं उम्र भर रहा नाकामियों से ख़ौफ़-ज़दा जहाँ भी देखो तअ'स्सुब की चल रही है हवा हमारा शहर है बलवाइयों से ख़ौफ़-ज़दा कभी किसी का बुरा ही नहीं किया फिर भी ज़माना है मिरी ख़ुश-हालियों से ख़ौफ़-ज़दा करम तुम्हारा कोई बे-ग़रज़ नहीं होता है दिल तुम्हारी मेहरबानियों से ख़ौफ़-ज़दा इलाही तुझ को ख़बर है कि ये तिरा 'साहिर' है कितना अपनी परेशानियों से ख़ौफ़-ज़दा