अरमान मिरे दिल के निकलने नहीं देते वो दाल मिरे इश्क़ की गलने नहीं देते हर रोज़ किया करते हैं वो इक नया वा'दा उश्शाक़ को हाथों से निकलने नहीं देते रातों को भी ग़ाज़ा से चमकता है वो चेहरा सूरज वो कभी हुस्न का ढलने नहीं देते हर रोज़ वो हर अह्द से फिर जाते हैं लेकिन पहली के मिरे वा'दे को टलने नहीं देते रुख़्सार के शो'ले हों कि होंटों की तपिश हो परवानों को इस आग में जलने नहीं देते मतलब पे जो आ जाऊँ बदल देते हैं उनवाँ वो राज़ मोहब्बत का उगलने नहीं देते कहने की है आज़ादी मगर बात ये सच है औरों की कोई बात वो चलने नहीं देते दफ़्तर में भी कुछ हुस्न-ए-बुताँ है मिरे आगे आफ़त से मिरी जान निकलने नहीं देते कुछ सोच 'रहीम' अब तो रेआया है कि राई वो कौन हैं जो फूलने-फलने नहीं देते