अर्सा दराज़ जिस से मिरा दिल लगा रहा वो बेवफ़ा सा शख़्स था वो बेवफ़ा रहा नेकी वो कौनसी थी कि जिस की जज़ा मिली तस्वीर तेरी देख के मैं सोचता रहा शायद बदल गया हो वो अब की ख़बर नहीं जब तक हमारे साथ था अच्छा भला रहा मुद्दत के बाद आज वो फिर याद आई है मुख़्लिस थी या नहीं थी मगर दिल लगा रहा तुझ से जुदा हुए तो अधूरे से हम रहे ख़ुशियाँ तो हर तरफ़ थीं मगर दिल दुखा रहा यूँ तो किसी पे राज़-ए-मोहब्बत अयाँ नहीं पर नींद में मैं नाम तिरा बोलता रहा वाइज़ से यूँ ख़ुदा ने की आग़ाज़ गुफ़्तुगू सुनते हैं तू जहाँ में बड़ा पारसा रहा बैठे रहे वो 'शान' रक़ीबों की बज़्म में वाँ पर चराग़ और यहाँ दिल जला रहा