अर्सा-ए-ज़ुल्मत-ए-हयात कटे हम-नफ़स मुस्कुरा कि रात कटे समर-ए-आरज़ू का ज़िक्र न छेड़ छूने पाए न थे कि हात कटे काश हर ज़ुल्फ़ तेग़ बन जाए काश ज़ंजीर-ए-हादसात कटे ऐ बक़ा-ए-दवाम के मालिक किस तरह उम्र-ए-बे-सबात कटे आदमी जुस्तुजू-ए-राह में है तुझ को ज़िद है रह-ए-नजात कटे शब-ए-ख़ल्वत-सुख़न सुख़न की दाद और सर-ए-बज़्म बात बात कटे