अर्श-ए-ख़ुदा ख़मोश है तहतुस-सरा में चुप शोर इतना है कि फैल गई है फ़ज़ा में चुप उस ने भी अपने होंटों को पाबंद कर लिया मैं ने भी डाल रखी है दस्त-ए-दुआ' में चुप इल्ज़ाम अब तो तीर की मानिंद आएँगे तुम आए भी तो यूँ कि थी आवाज़-ए-पा में चुप सूरज तअ'ल्लुक़ात का ढलने पे आ गया मेरे जुनूँ में शोर है तेरी वफ़ा में चुप पिंदार-ए-सर्द-मेहरी-ए-दुनिया की ख़ैर हो दिल ने अगरचे कर लिया शामिल दुआ में चुप कोई वजूद ही नहीं लफ़्ज़-ए-सुकून का अपनी बक़ा में चुप है न अपनी फ़ना में चुप 'आफ़ाक़' दुनिया क्या है क़यामत के बा'द भी ज़िंदा रहेगी हुल्ला-ए-अहल-ए-रिदा में चुप