असर होता नहीं है पत्थरों पर हमें भी नाज़ है अपने सरों पर मैं हिलती शाख़ से डरता नहीं हूँ भरोसा है मुझे अपने परों पर दुआएँ माँगती रहती हैं नदियाँ उमड आते हैं बादल सागरों पर मुझे उन बस्तियों की आरज़ू है जहाँ ताले नहीं मिलते घरों पर क़लम कमज़ोर पड़ता जा रहा है सियासत छा रही है शाइ'रों पर लड़े दोनों थे हिन्दू और मुस्लिम मगर किस का लहू था ख़ंजरों पर अगर ख़ुद पर भरोसा है तो 'उल्फ़त' उभर आते हैं चेहरे पत्थरों पर