ये सोच रखा है कोई शिकवा नहीं करूँगा मैं अपनी ग़ैरत मज़ीद रुस्वा नहीं करूँगा मिरी वफ़ाएँ तिरे रवय्ये पे मुनहसिर हैं वफ़ा करूँगा मगर ये वा'दा नहीं करूँगा नहीं सुनाऊँगा अब गुलाबों को तेरा क़िस्सा मैं तितलियों से भी तेरा चर्चा नहीं करूँगा वो इक मसीहा जो सारी बस्ती का चारागर है वो मुझ से कहता है तुझ को अच्छा नहीं करूँगा तुम अब के मुझ को जो रास्ते में कहीं मिलोगे तो देख लेना कोई इशारा नहीं करूँगा बड़ी उम्मीदों से मैं ने पूछा वफ़ा करोगे बड़े तफ़ाख़ुर से मुझ से बोला नहीं करूँगा किसी के डर से मैं जान-ए-'नासिर' को दोस्त कह दूँ मुआ'फ़ कीजेगा हरगिज़ ऐसा नहीं करूँगा