असर नसीहत तुम्हारी मुझ पर है रुत सुहानी न कर सकेगी समझता हूँ एहतियात इतनी मिरी जवानी न कर सकेगी अधूरे अल्फ़ाज़ के ज़रीये वफ़ा का इज़हार है क़यामत कि जादू शर्म और हिचकिचाहट सा याँ रवानी न कर सकेगी ये हुस्न वालों से भर गया है हसीं हो तुम भी पे मेरे दिल पर तुम्हारी सूरत भी बा'द कुछ दिन के हुक्मरानी न कर सकेगी रहेगी कब तक मोहब्बतों की असास इन बे-हिजाबियों पर कभी भी जल्वागरी सा जादू तो लन-तरानी न कर सकेगी मिरा तसव्वुर ग़लत ही निकला यही हक़ाएक़ का फ़ैसला है कि कोई भी तर्ज़ मेरे जज़्बों की तर्जुमानी न कर सकेगी