गुलशन गुलशन शो'ला-ए-गुल की ज़ुल्फ़-ए-सबा की बात चली हर्फ़-ए-जुनूँ की बंद-ए-गिराँ की जुर्म-ओ-सज़ा की बात चली ज़िंदाँ ज़िंदाँ शोर-ए-जुनूँ है मौसम-ए-गुल के आने से महफ़िल महफ़िल अब के बरस अरबाब-ए-वफ़ा की बात चली अहद-ए-सितम है देखें हम आशुफ़्ता-सरों पर क्या गुज़रे शहर में उस के बंद-ए-क़बा की रंग-ए-हिना की बात चली एक हो दीवाना इक ने सर तेशे से फोड़ लिया कैसे कैसे लोग थे जिन से रस्म-ए-वफ़ा की बात चली टूट गईं नग़्मों की तनाबें शे'र के ख़ेमे राख हुए बज़्म-ए-सुख़न में जब भी 'सलीम' इस शोला-नवा की बात चली