नज़र झुका के नज़र से गिरा गए मुझ को मैं आइना था हक़ीक़त दिखा गए मुझ को मैं बे-गुनाही का अपनी सुबूत क्या देता वो सारी ग़लतियाँ मेरी गिना गए मुझ को बिछड़ते वक़्त अँगूठी को दे गए वापस वो जाते जाते भी कितना रुला गए मुझ को सितम किए है मिरे साथ इस क़दर 'आकिब' मैं मोम था वो तो पत्थर बना गए मुझ को