अश्क आँखों में मिरी जान लिए बैठी हूँ लब पे तेरे लिए मुस्कान लिए बैठी हूँ तुम भी मेरी तरह कुछ ठोस इरादा कर लो मैं निभा देने के पैमान लिए बैठी हूँ जल्द आ जाओ ख़िज़ाँ आने से पहले पहले मैं बहारों के कुछ एहसान लिए बैठी हूँ एक मुद्दत से तिरी रह में बिछी हैं आँखें मैं शब-ए-वस्ल के अरमान लिए बैठी हूँ मुझ को डर है न कहीं ज़ब्त की गिर जाए फ़सील आँखों में अश्क का तूफ़ान लिए बैठी हूँ वो मिरे प्यार की ख़ुशबू से नहीं है वाक़िफ़ अपने दामन में गुलिस्तान लिए बैठी हूँ