अश्क आया आँख में जलता हुआ आज सोज़-ए-ग़म का अंदाज़ा हुआ ज़िंदगी गुज़री उम्मीद-ओ-यास में दिल कभी गुलशन कभी सहरा हुआ ज़िक्र-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार रहने दो अभी मसअला है ज़ीस्त का उलझा हुआ बन गया दामन में वो आँसू गुहर जो न मेरी आँख का तारा हुआ बारहा रुक रुक गई नब्ज़-ए-जहाँ हुस्न का जादू है क्या चलता हुआ गर्दिशों से क्या मुझे देगा नजात जाम ख़ुद गर्दिश में है आया हुआ दिल वो क्या जो ग़म से हो ना-आश्ना ग़म वो क्या जिस का कि अंदाज़ा हुआ हम परेशाँ-हाल 'फ़ाज़िल' से मिले है तबीअत का बहुत सुलझा हुआ