हैरत के दफ़्तर जाऊँ मैं अपने अंदर जाऊँ आँखें चार करूँ सब से आईने से डर जाऊँ दुनिया मिल ही जाएगी ज़ीने चंद उतर जाऊँ ऐसा कोई पल आए साए से बाहर जाऊँ तुझ को सोचूँ पल भर मैं ज़ंजीरों से भर जाऊँ जिस रस्ते हैं ख़ार बबूल उस रस्ते अक्सर जाऊँ दुख के जंगल से निकलूँ तेरी राहगुज़र जाऊँ रात फ़लक पर उभरे तो मैं तारों से भर जाऊँ कोई पल को अकेला छोड़ कोई काम तो कर जाऊँ