अश्क पीना पड़ा ग़म छुपाना पड़ा तुम से मिल कर हमें मुस्कुराना पड़ा हो के नादिम वो मिलने को जब आ गए सारा शिकवा गिला भूल जाना पड़ा आ के दहलीज़ पर मुझ से ख़ुद्दार की माल-ओ-ज़र को तिरे सर झुकाना पड़ा झुक गए सर सभी के तो आख़िर मुझे पेश-ए-तेग़-ए-सितम सर उठाना पड़ा खेल दिल का भी 'ज़ख़्मी' अजब खेल है जीत कर भी मुझे हार जाना पड़ा