अश्क टपके हाल दिल का खुल गया दीदा-ए-गिर्यां से पर्दा खुल गया दिल से उमडे अश्क-ए-ख़ूँ आँखों की राह जोश-ए-मय से ख़ुम का ढकना खुल गया कूचा-ए-जानाँ की मिलती थी न राह बंद कीं आँखें तो रस्ता खुल गया हर गिरह में उस के थे आशिक़ के दिल ज़ुल्फ़ के खुलते ही उक़्दा खुल गया नर्गिस-ए-जादू है अब आलम-फ़रेब ज़ुल्फ़ का लोगों पे लटका खुल गया जान कर अन्क़ा कमर को यार के ज़ुल्फ़ ने फाँसा था फंदा खुल गया आज क्यूँकर हो ख़बर उस को 'नसीम' शे'र पढ़ने का भी फ़िक़रा खुल गया